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परिजनों की चीखें रात के सन्नाटे में रह-रहकर चीत्कार मारती रहीं

उन्नाव:-

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बहुरहा गांव में 2 दिन से मातम का बादल छाया हुआ है। बृहस्पतिवार को दो लड़कियों का शव घर पहुंचने के बाद परिजनों का रो-रो कर बहुत बुरा हाल है। रात के सन्नाटे में रह-रहकर परिजनों की चीखें सुनाई पड़ रही थी। भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है, लोगों का जमावड़ा लगा है, हर कोई मौत की वजह जानने के लिए परेशान है।

प्रतिदिन की तरह खेत पर घास लेने गयी तीन दलित लड़कियों के साथ 17 फरवरी को क्या हुआ था। इस सवाल का जवाब 24 घंटे से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी किसी के पास नहीं है। पोस्टमार्टम होने के बाद दो बच्चियों नेहा और निकिता (बदला हुआ नाम) के शव बृहस्पितवार की शाम करीब छह बजे गांव पहुंचे थे। दोनों के शव रात भर उनके घरों पर रखे रहे। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी शुक्रवार सुबह एक परिजनों से बात कर शवों के अंतिम संस्कार (दफनाने) के लिए राजी करने में जुटे रहे। आईजी लखनऊ ने भी परिवार वालों से बात की, जिसके बाद दोंनों लड़कियों के परिवार वाले अंतिम संस्कार को राजी हुए। पुलिस-प्रशासन का कहना थाट कि पोस्टमार्टम के बाद ज्यादा देर तक शवों का रखना ठीक नहीं।

कल शाम शव पहुंचने के बाद पूरा क्षेत्र गमगीम हो गया। परिवार वालों की चीखें थमने का नाम नहीं ले रही हैं, रोते-रोते बार वो बेहोश हो रहे हैं पानी के छींटे मारकर उन्हें होश में लाया जा रहा है। पूरा गाँव गमगीन है, हर कोई इस सवाल के आस में बैठा कि आखिर इन बच्चियों की मौत कैसे हुई?

प्रशासन की तरफ से दोपहर में जो जेसीबी आयी थी जिससे उस जगह गड्ढा खोदा जाना था जहाँ इन दोनों बच्चियों को दफनाया जाना है, दोपहर में परिजनों के विरोध के बाद जेसीबी को खड़ा कर दिया गया था लेकिन शाम को गाँव में शव पहुंचने के कुछ देर बाद फिर से जेसीबी को गड्ढे खोदने के लिए स्टार्ट किया गया। परिजनों के काफी विरोध के बाद उसे बंद किया गया। परिजन रात में किसी में स्थिति में शव दफनाने के लिए तैयार नहीं हुए। रात में ऐसा अंदेशा भी रहा कि कि हो सकता है देर रात शवों को दफना दिया जाये।

उन्नाव के बबुरहा गांव में संदिग्ध परिस्थतियों में मिलीं 3 लड़कियां दलित परिवार से थीं। जिसमें से दो बुआ भतीजी और एक चचेरी बहन थी।
पन्द्रह वर्षीय निकिता ने 17 फरवरी को जो रोटी और सब्जी बनाई हुई थी वो उसी चूल्हे के पास अभी भी सूखी हुई पड़ी हैं। उनकी बुजुर्ग दादी और बाबा का रो-रोकर बुरा हाल है। उनकी दादी रोते-रोते कह रही थीं, “जब 12 दिन की हमारी बिटिया थी तभी उसकी माँ मर गयी। मेहनत मजदूरी करके उसके लिए दूध का इंतजाम किया तब उसे जिया पाए थे। मरना था तभी मर जाती दुःख नहीं होता, अब तो पाल पोसकर इतना बड़ा कर दिया था, किसकी नजर लग गयी हमारी बिटिया को।

निकिता जब 12 दिन की थी तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था, कुछ सालों बाद इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, उनके दो बच्चे हैं। निकिता अपने बुजुर्ग बाबा-दादी के साथ रहती थी। कई सारे जानवर हैं जिनके लिए निकिता घास लेने रोज जाती थी।

निकिता के बुजुर्ग बाबा दरवाजे पर बंधी भैसों की तरफ इशारा करते हुए बता रहे थे,जबसे नातिन बड़ी हुई तबसे इनके लिए वही खेत से चारा लाती थी, इन्हें पानी पिलाती थी। हम दोनों लोग तो बुड्ढे हो गये हैं वही एक हमारा सहारा थी, अब किसके सहारे जियेंगे।
निकिता जिस घर में रहती है वो एक छोटा सा कमरा है, गृहस्थी के कुछ बर्तन है, एक बक्सा रखा है, निकिता की एक कोने में नई चप्पल रखी हैं कुछ पुराने कपड़े टंगे हैं। मिट्टी के चूल्हे के पास बुझी राख पड़ी है, कुछ लकड़ियाँ कोने में रखी है, कटोरी में निकिता के हाथ की बनी सब्जी और प्लेट में कुछ रोटियां पड़ी थीं जो अब सूख चुकी थीं।

सत्रह वर्षीय नेहा की माँ पूरे दिन रो-रोकर यही कहती रहीं, हमारी किसी से कोई दुश्मनी है, हमारी बिटिया रोज चारा लेने जाती थी। वो अपने रास्ते जाती, अपने रास्ते वापस आती। हमें किसी पर कोई शक नहीं पर जिसने भी हमारी बेटी की ये दशा की है उसकी भी ऐसी दशा की जाए। जब लोग उन्हें पानी पिला रहे थे तो वो पीने से मना कर रही थीं और कह रहीं थीं, हमारी बिटिया ने कल सुबह हमें चाय बनाकर पिलाई ,दोपहर में हम दोनों ने खाना खाया। हम भी चारा लेने गये थे पर उससे थोड़ी दूर दूसरे खेत में थे, हम शाम को वापस आ गये जब वो नहीं आयीं तब उसे खोजने लगे।

ये घटना लखनऊ से लगभग 35 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के असोहा थानाक्षेत्र से लगभग तीन किलोमीटर दूर बबुरहा गाँव की है। जहाँ 17 फरवरी की दोपहर करीब तीन बजे दलित समुदाय की तीनों एक ही परिवार की लड़कियाँ जानवरों के लिए रोज की तरह खेत में चारा (घास) काटने गयी थीं जब सूरज के ढलते अँधेरे के साथ वो वापस नहीं लौटी तब परिजनों ने उन्हें खोजना शुरू किया। शाम के करीब छह सात बजे सरसों के खेत में तीनों बच्चियां संदिग्ध अवस्था में मिलीं। इनके परिजनों ने बताया कि तीनों के दुप्पट्टा से उनका गला और हाथ बंधे हुए थे।

हालांकि पुलिस ने इससे इनकार किया। उन्हें पास के एक प्राईवेट अस्पताल ले जाया गया वहां गंभीर हालत बताकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र असोहा भेज दिया। यहाँ डॉ ने नेहा और निकिता को मृत घोषित कर दिया और तीसरी लड़की 16 वर्षीय पूनम (बदला हुआ नाम) को जिला अस्पताल भेज दिया गया जहाँ से उसे कानपुर रिफर कर दिया गया, अभी उसकी हालत नाजुक बनी हुई है। क्या आपका किसी से लड़ाई-झगड़ा हुआ था, आपको किसी पर कोई शक है क्या? ये पूछने पर नेहा की माँ बोलीं, नहीं हमारी किसी से कोई लड़ाई नहीं है न हमें किसी पर शक है। तीनों बिटिया एक ही परिवार की हैं, खेत से चारा लाना तो रोज की बात थी। निकिता के घर के ठीक सामने रहने वाली उनकी पड़ोसन ने बताया, जब ये तीनों लड़कियाँ खेत जा रही थीं हम दरवाजे पर ही बैठे थे, तीनों बहुत खुश थीं। हमने पूछा भी था कि चारा लेने जा रही हो क्या? उसने हंसते हुए कहा कि हां, फिर तीनों चली गईं। शाम को पता चला कि दो मर गईं तब से आज तक एक कौर मुंह में नहीं गया है। बहुत सीधी थीं, एक तो दरवाजे पर ही रहती थी उससे रोज हंसी मजाक होता था।रात के सन्नाटे में अभी गाँव में चहल-पहल काफी कम हो गयी है, पूरे गाँव में मातम पसरा हुआ है। परिजनों के सिसकियों की आवाज़ अभी भी रह-रहकर सुनाई पड़ रही है।

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